Transfer Of Property Act Notes Law Classes Jaipur
- lawclasses555
- Aug 10
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भाग I: प्रारंभिक (Preliminary)
धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ (Short title, extent and commencement)
· संक्षिप्त नाम: संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882।
· विस्तार: यह अधिनियम शुरुआत में ब्रिटिश भारत के कुछ क्षेत्रों में लागू हुआ था, लेकिन अब यह पूरे भारत पर लागू होता है, सिवाय उन क्षेत्रों के जिन्हें संबंधित राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा बाहर कर सकती है। यह कुछ विशेष प्रकार के हस्तांतरणों पर लागू नहीं होता है, जैसे कि कानून के संचालन (Operation of Law) द्वारा होने वाले अंतरण (जैसे विरासत या दिवाला)।
· प्रारंभ: 1 जुलाई, 1882।
धारा 2: निरसन (Repeal)
· यह धारा कुछ पुराने अधिनियमों को निरस्त करती है जो संपत्ति के अंतरण से संबंधित थे।
धारा 3: निर्वचन खंड (Interpretation-clause)
यह धारा अधिनियम में प्रयुक्त कुछ महत्वपूर्ण शब्दों को परिभाषित करती है:
· अचल संपत्ति (Immovable Property): इसमें खड़ी लकड़ी (standing timber), उगती फसलें (growing crops) या घास (grass) शामिल नहीं है।
o उदाहरण: जमीन, भवन, दीवारों से स्थायी रूप से जुड़ा हुआ कोई भी ढांचा, और जमीन से जुड़े लाभ (जैसे नदी में मछली पकड़ने का अधिकार या राजमार्ग पर टोल वसूलने का अधिकार)।
o अपवाद: पेड़ जो कटने के उद्देश्य से लगाए गए हैं (खड़ी लकड़ी), वे अचल संपत्ति नहीं हैं। फसलें जो कटाई के लिए हैं, वे भी अचल संपत्ति नहीं हैं।
· रजिस्ट्रीकृत (Registered): इसका अर्थ है कि किसी दस्तावेज को भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत उचित रूप से पंजीकृत किया गया है। पंजीकरण से दस्तावेज को सार्वजनिक सूचना (Public Notice) माना जाता है।
· अनुप्रमाणित (Attested): इसका अर्थ है कि किसी दस्तावेज को कम से कम दो या अधिक गवाहों द्वारा सत्यापित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक ने निष्पादनकर्ता (Executant) को हस्ताक्षर करते हुए या उसके द्वारा हस्ताक्षर के निशान बनाते हुए देखा हो, या निष्पादनकर्ता की उपस्थिति में और उसके निर्देश पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर करते हुए देखा हो। गवाहों को भी निष्पादनकर्ता की उपस्थिति में दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करना चाहिए।
· भूबद्ध (Attached to the earth): इसमें तीन चीजें शामिल हैं:
1. पृथ्वी में जड़ें जमाए हुए (जैसे पेड़ और झाड़ियाँ, जब तक कि वे खड़े लकड़ी न हों)।
2. पृथ्वी से जुड़ी हुई चीजें (जैसे दीवारें या भवन)।
3. स्थायी लाभप्रद उपभोग के लिए पृथ्वी से जुड़ी किसी चीज से स्थायी रूप से जुड़ी हुई चीजें (जैसे घर में लगे दरवाजे या खिड़कियां)।
· सूचना (Notice):
o वास्तविक सूचना (Actual Notice): जब किसी व्यक्ति को किसी तथ्य की सीधे तौर पर जानकारी होती है।
o रचनात्मक सूचना (Constructive Notice): जब किसी व्यक्ति को किसी तथ्य की प्रत्यक्ष जानकारी न हो, लेकिन कुछ परिस्थितियों के कारण यह माना जाता है कि उसे जानकारी होनी चाहिए थी। यह तब माना जाता है जब:
1. कोई लेनदेन पंजीकृत हो।
2. कब्जे में होने वाला व्यक्ति संपत्ति पर कब्जा कर रहा हो।
3. एक जांच से जानबूझकर परहेज किया गया हो, जिसे करने पर तथ्य का पता चल जाता।
4. अत्यधिक लापरवाही के कारण व्यक्ति को जानकारी न हो।
o उदाहरण: A एक संपत्ति खरीद रहा है। यदि संपत्ति का पट्टा पंजीकृत है, तो A को यह माना जाएगा कि उसे उस पट्टे की शर्तों की "सूचना" है, भले ही उसने वास्तव में उसे न पढ़ा हो।
· अनुयोज्य दावा (Actionable Claim): यह एक असुरक्षित ऋण या किसी चल संपत्ति में ऐसे लाभकारी हित का दावा है जो कब्जाधारक के कब्जे में नहीं है, जिसे सिविल अदालतों द्वारा राहत के लिए मान्यता दी जाती है।
o उदाहरण: किसी व्यक्ति से उधार दिया गया पैसा वसूलने का अधिकार (एक असुरक्षित ऋण)। एक लॉटरी टिकट जीतने का दावा (यदि टिकट अभी तक नकदीकृत नहीं हुआ है)।
भाग II: संपत्ति के अंतरण के संबंध में (Of Transfers of Property)
धारा 5: 'संपत्ति का अंतरण' परिभाषित (Transfer of property' defined)
· परिभाषा: संपत्ति का अंतरण एक ऐसा कार्य है जिसके द्वारा एक जीवित व्यक्ति (Living Person) एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को, या स्वयं को और एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को, वर्तमान में या भविष्य में, संपत्ति अंतरित करता है।
· जीवित व्यक्ति: इसमें कंपनी या व्यक्तियों का निकाय (Body of Individuals) शामिल है, चाहे वह निगमित हो या नहीं।
· उदाहरण: A अपनी जमीन B को बेचता है। A अपनी जमीन को एक ट्रस्ट को दान करता है जिसमें A स्वयं एक लाभार्थी है।
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धारा 6: क्या अंतरित किया जा सकता है (What may be transferred)
· सामान्यतः, हर प्रकार की संपत्ति हस्तांतरणीय होती है।
· अपवाद (जो अंतरित नहीं किया जा सकता):
o उत्तराधिकार की केवल संभावना (Chance of an heir apparent succeeding to an estate): एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का वारिस बनने की केवल संभावना।
§ उदाहरण: A का पिता अभी जीवित है और A उसकी संपत्ति का एकमात्र वारिस है। A अपने पिता की संपत्ति में अपने उत्तराधिकार की 'संभावना' को किसी और को नहीं बेच सकता।
o पुनः प्रवेश का अधिकार (Right of re-entry): किसी शर्त के उल्लंघन पर भूमि पर पुनः प्रवेश करने का अधिकार (जो व्यक्तिगत होता है)।
o सुखाचार (Easement): व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग किया जाने वाला अधिकार, जो प्रमुख संपत्ति से अलग नहीं किया जा सकता।
§ उदाहरण: किसी और की जमीन से होकर रास्ता बनाने का अधिकार केवल उस जमीन के मालिक द्वारा ही उपयोग किया जा सकता है, न कि किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा अलग से बेचा जा सकता है।
o भविष्य में भरण-पोषण का अधिकार (Right to future maintenance): यह एक व्यक्तिगत अधिकार है।
o सार्वजनिक कार्यालय (Public Office): या ऐसे कार्यालय के वेतन।
o पेंशन (Pensions): सैन्य, नौसैनिक, वायु सेना या सिविल पेंशन।
o केवल वाद करने का अधिकार (Mere right to sue): केवल क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा करने का अधिकार।
o विधि द्वारा वर्जित अन्य अंतरण।
धारा 7: अंतरण करने में कौन सक्षम है (Who may transfer)
· जो व्यक्ति संपत्ति का मालिक हो या जिसे अंतरण करने के लिए अधिकृत किया गया हो।
· व्यक्ति संविदा करने के लिए सक्षम होना चाहिए (अर्थात, वयस्क, स्वस्थ चित्त का, और किसी कानून द्वारा अयोग्य न हो)।
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धारा 8: अंतरण का प्रभाव (Operation of transfer)
सिद्धांत: यह धारा बताती है कि जब कोई व्यक्ति किसी संपत्ति को अंतरित (transfer) करता है, तो वह संपत्ति से संबंधित सभी कानूनी अधिकार और हित (legal incidents) भी अंतरिती (transferee) को स्वतः ही मिल जाते हैं, जब तक कि विपरीत आशय (contrary intention) व्यक्त न किया गया हो।
कानूनी अधिकार और हित क्या हैं?
संपत्ति से जुड़ी हुई वस्तुएं: जैसे यदि कोई मकान बेचा जाता है, तो मकान से जुड़े हुए दरवाजे, खिड़कियाँ और फिटिंग भी अंतरित हो जाती हैं।
किराया और लाभ: यदि संपत्ति किराये पर है, तो अंतरण के बाद मिलने वाला किराया और अन्य लाभ भी अंतरिती को मिल जाते हैं।
अन्य अधिकार: बंधक (mortgage) के मामले में, ऋण को सुरक्षित करने के लिए बंधककर्ता (mortgagor) के खिलाफ सभी अधिकार और उपाय अंतरिती को मिल जाते हैं।
उदाहरण: यदि अशोक अपना एक प्लॉट अपने दोस्त विक्रम को बेचते हैं, तो प्लॉट के साथ-साथ उसमें लगे हुए पेड़, फसल और उस पर बने हुए शेड भी स्वतः ही विक्रम को मिल जाएंगे, जब तक कि बिक्री के अनुबंध में यह स्पष्ट रूप से न कहा गया हो कि ये वस्तुएं शामिल नहीं हैं।
धारा 9: मौखिक अंतरण (Oral transfer)
सिद्धांत: यह धारा बताती है कि यदि कोई संपत्ति अंतरण कानून द्वारा लिखित में होना अनिवार्य नहीं है, तो उसे मौखिक रूप से भी अंतरित किया जा सकता है।
लिखित की आवश्यकता कब? कुछ मामलों में संपत्ति का अंतरण लिखित और पंजीकृत (registered) होना अनिवार्य है, जैसे:
स्थावर संपत्ति (immovable property) का दान।
₹100 से अधिक मूल्य की स्थावर संपत्ति की बिक्री।
बंधक (mortgage) और पट्टा (lease) के कुछ प्रकार।
कब संभव है मौखिक अंतरण?
₹100 से कम मूल्य की स्थावर संपत्ति की बिक्री।
जंगम संपत्ति (movable property) का दान, जो केवल कब्जे के हस्तांतरण से किया जा सकता है।
उदाहरण: यदि अशोक को अपने दोस्त राकेश को अपनी ₹50 की घड़ी बेचनी है, तो वह इसे मौखिक अनुबंध से भी कर सकते हैं। उन्हें कोई लिखित दस्तावेज बनाने की आवश्यकता नहीं है।
धारा 10: अन्य संक्रामण अवरुद्ध करने वाली शर्त (Condition restraining alienation)
· यदि कोई शर्त पूर्णतः अंतरिती को संपत्ति को आगे अंतरित करने से प्रतिबंधित करती है, तो ऐसी शर्त शून्य (Void) होती है। संपत्ति अंतरित हो जाती है, लेकिन शर्त लागू नहीं होती।
· उदाहरण: A अपनी संपत्ति B को बेचता है इस शर्त पर कि B कभी भी संपत्ति को किसी और को नहीं बेच सकता। यह शर्त शून्य है, और B संपत्ति का मालिक बनने के बाद उसे बेचने के लिए स्वतंत्र है।
· अपवाद: पट्टे पर या विवाहित महिला के लाभ के लिए लगाई गई कुछ सीमित शर्तें वैध हो सकती हैं।
धारा 11: सृजित हित के विरुद्ध निर्बंधन (Restriction repugnant to interest created)
सिद्धांत: जब कोई व्यक्ति किसी संपत्ति को अंतरित (transfer) करता है, और उस अंतरण के साथ एक ऐसी शर्त लगाता है जो संपत्ति के उपभोग या उपयोग को पूरी तरह से प्रतिबंधित करती है, तो वह शर्त शून्य (void) मानी जाती है। हालांकि, अंतरण स्वयं वैध रहता है।
इसका मतलब: यदि कोई व्यक्ति किसी को संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व देता है, तो वह उस संपत्ति के साथ ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगा सकता जो मालिक के रूप में उसके अधिकारों के विपरीत हो।
उदाहरण: 'क' अपनी भूमि 'ख' को बेचता है, लेकिन अनुबंध में यह शर्त रखता है कि 'ख' इस भूमि पर कोई इमारत नहीं बना सकता। यह शर्त शून्य है क्योंकि यह 'ख' को मिले पूर्ण स्वामित्व के अधिकार के विपरीत है।
अपवाद: यदि यह प्रतिबंध किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिए लगाया गया है, तो यह वैध हो सकता है। जैसे, यदि 'क' की एक और भूमि 'ग' के बगल में है, और 'क' 'ख' को अपनी भूमि बेचते समय कहता है कि 'ख' अपनी भूमि पर 'ग' की भूमि के रास्ते को बाधित नहीं करेगा, तो यह प्रतिबंध वैध है।
धारा 12: दिवालियापन या पर-अन्तरण के प्रयास पर हित को समाप्त करने की शर्त (Condition making interest determinable on insolvency or attempted alienation)
सिद्धांत: जब किसी व्यक्ति को संपत्ति अंतरित की जाती है और उसके साथ यह शर्त लगाई जाती है कि यदि वह व्यक्ति दिवालिया (insolvent) हो जाता है या संपत्ति को किसी और को अंतरित (alienate) करने का प्रयास करता है, तो उसका हित समाप्त हो जाएगा, तो ऐसी शर्त शून्य मानी जाती है।
इसका मतलब: कानून किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करने की अनुमति नहीं देता यदि वह दिवालिया हो जाता है या अपनी संपत्ति को बेचने का प्रयास करता है। यह ऋणी के लेनदारों के हितों की रक्षा के लिए है।
उदाहरण: 'क' अपनी संपत्ति 'ख' को देता है, इस शर्त पर कि यदि 'ख' कभी दिवालिया हो जाता है, तो संपत्ति 'ग' को चली जाएगी। यह शर्त शून्य है।
अपवाद: यह नियम केवल पट्टे (lease) के मामलों में लागू नहीं होता है। यदि पट्टे में ऐसी शर्त है, तो वह वैध मानी जा सकती है।
धारा 13: अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए अंतरण (Transfer for benefit of unborn person)
सिद्धांत: कोई भी संपत्ति सीधे तौर पर एक अजन्मे व्यक्ति (unborn person) को अंतरित नहीं की जा सकती। हालांकि, यह अजन्मे व्यक्ति को अंतरित हो सकती है यदि उसके लिए एक पूर्व हित (prior interest) बनाया गया हो।
आवश्यक शर्तें:
पहले किसी जीवित व्यक्ति (जैसे 'क' के पुत्र) के लिए एक हित सृजित होना चाहिए।
अजन्मे व्यक्ति को दिया जाने वाला हित पूर्ण हित (absolute interest) होना चाहिए, न कि सीमित हित।
यह अंतरण एक श्रृंखला के माध्यम से होता है, जिसमें अंतिम हित अजन्मे व्यक्ति को मिलता है, जब वह जन्म लेता है।
उदाहरण: 'क' अपनी संपत्ति अपने पुत्र 'ख' को उसके जीवनकाल के लिए देता है, और 'ख' की मृत्यु के बाद, 'ख' के अजन्मे पुत्र को देता है। जैसे ही 'ख' का पुत्र जन्म लेता है, संपत्ति में उसका हित निहित हो जाता है।
नोट: इस धारा को धारा 14 (शाश्वतता के विरुद्ध नियम) के साथ पढ़ा जाना चाहिए, जो यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी संपत्ति अनिश्चित काल तक अंतरण से बाहर न रहे।
धारा 14: शाश्वतता के विरुद्ध नियम (Rule against perpetuity)
· कोई भी संपत्ति का अंतरण ऐसा नहीं किया जा सकता जिससे संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व किसी व्यक्ति को शाश्वत काल तक न मिल पाए।
· नियम: संपत्ति को अंतरण की तारीख पर जीवित अंतिम लाभार्थी (Last Living Person) और उसकी मृत्यु के 18 वर्ष (नाबालिग होने की अवधि) के बाद तक ही निलंबित रखा जा सकता है।
· उदाहरण: A अपनी संपत्ति B को जीवन भर के लिए देता है, फिर B के सबसे बड़े बेटे को जीवन भर के लिए (जो अभी पैदा नहीं हुआ है), और फिर उसके बाद उस बेटे के सबसे बड़े बेटे को। यह शाश्वतता के नियम का उल्लंघन करता है क्योंकि संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व अनिश्चित काल तक निलंबित रहता है।
धारा 15: अंतरण जो किसी वर्ग के व्यक्तियों के लिए किया गया है
· मूल सिद्धांत: यदि किसी संपत्ति का अंतरण (transfer) किसी वर्ग के व्यक्तियों के लाभ के लिए किया जाता है, और उनमें से कुछ व्यक्तियों के लिए यह अंतरण धारा 13 और 14 के नियमों के कारण विफल हो जाता है, तो यह अंतरण केवल उन व्यक्तियों के संबंध में विफल होगा, न कि पूरे वर्ग के संबंध में।
· उदाहरण: एक व्यक्ति 'क' अपनी संपत्ति अपने सभी पोते-पोतियों को देता है, जो 18 वर्ष की आयु पूरी करने पर संपत्ति प्राप्त करेंगे। 'क' के दो पोते 'ख' और 'ग' हैं, जो उस समय जीवित हैं। 'क' की मृत्यु के बाद, एक और पोता 'घ' पैदा होता है। धारा 14 के नियम के अनुसार, 'घ' का हित अवैध होगा क्योंकि यह अजन्मे व्यक्ति के लिए है और इसमें अनिश्चितता है। लेकिन धारा 15 के अनुसार, 'घ' का हित विफल हो जाएगा, जबकि 'ख' और 'ग' का हित वैध रहेगा और उन्हें संपत्ति मिल जाएगी।
धारा 16: पूर्विक हित (prior interest) की विफलता पर अंतरण
· मूल सिद्धांत: यदि संपत्ति के अंतरण में, एक पूर्विक हित (prior interest) विफल हो जाता है, तो उसके बाद का हित (subsequent interest) भी विफल हो जाता है। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि यदि कोई प्राथमिक शर्त या अंतरण शून्य हो जाता है, तो उस पर निर्भर बाद का कोई भी अंतरण भी शून्य माना जाएगा।
· उदाहरण: 'क' अपनी संपत्ति 'ख' को उसके जीवनकाल के लिए देता है, और 'ख' की मृत्यु के बाद, 'ग' के अजन्मे पुत्र को देता है। यदि 'ख' की मृत्यु से पहले 'ग' का कोई पुत्र पैदा नहीं होता है, तो 'ख' को दिया गया पूर्विक हित विफल हो जाता है। नतीजतन, अजन्मे पुत्र को दिया गया बाद का हित भी विफल हो जाएगा, और संपत्ति 'क' के कानूनी उत्तराधिकारियों के पास वापस चली जाएगी।
धारा 17: संचयन के विरुद्ध निर्देश (Direction for accumulation)
· मूल सिद्धांत: यह धारा संपत्ति से होने वाली आय को अनिश्चित काल तक इकट्ठा करने पर रोक लगाती है। संपत्ति के अंतरणकर्ता (transferor) द्वारा यह निर्देश दिया जा सकता है कि आय को अधिकतम दो अवधियों में से किसी एक के लिए संचित (accumulate) किया जाए:
o अंतरणकर्ता के जीवनकाल तक।
o अंतरण की तारीख से 18 वर्ष तक। इन दोनों अवधियों में से जो भी लंबी होगी, आय का संचयन केवल उतनी ही अवधि तक किया जा सकता है।
· अपवाद: यह नियम तब लागू नहीं होता है जब संचयन का उद्देश्य निम्नलिखित में से एक हो:
o अंतरणकर्ता के या अंतरण के तहत हित प्राप्त करने वाले किसी व्यक्ति के ऋणों का भुगतान करना।
o अंतरणकर्ता के या हित प्राप्त करने वाले व्यक्ति के पुत्र-पुत्रियों या अन्य दूरस्थ संतानों के भाग (portions) जुटाना।
o संपत्ति का रखरखाव या मरम्मत करना।
धारा 18: लोक-लाभ के लिए शाश्वतता के विरुद्ध नियम का अपवाद
· मूल सिद्धांत: यह धारा शाश्वतता के विरुद्ध नियम (Rule against perpetuity) का एक अपवाद है, जो यह अनुमति देता है कि यदि कोई संपत्ति जनहित, धर्म, ज्ञान, वाणिज्य, स्वास्थ्य या किसी अन्य सार्वजनिक लाभ को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दी गई है, तो उस पर धारा 14 और 16 के नियम लागू नहीं होंगे।
· उदाहरण: 'क' अपनी संपत्ति एक ट्रस्ट को दान करता है जिसका उद्देश्य गरीबों को भोजन और शिक्षा प्रदान करना है। इस ट्रस्ट को दिया गया अंतरण धारा 14 (शाश्वतता के विरुद्ध नियम) से बाधित नहीं होगा, क्योंकि यह सार्वजनिक लाभ के लिए है।
धारा 19: निहित हित (Vested interest)
· जब संपत्ति में किसी व्यक्ति का हित किसी अनिश्चित घटना पर निर्भर नहीं करता, बल्कि निश्चित घटना पर या केवल समय बीतने पर निर्भर करता है, तो वह निहित हित होता है।
· यह अंतरण योग्य और वंशानुगत होता है, भले ही कब्जे का अधिकार भविष्य में हो।
· उदाहरण: A अपनी संपत्ति B को देता है जब B 21 वर्ष का हो जाए। B के 21 वर्ष का होने पर उसे निहित हित प्राप्त हो जाता है, भले ही संपत्ति का कब्जा उसे बाद में मिले।
धारा 20: अजन्मे व्यक्ति का हित कब निहित होता है
· मूल सिद्धांत: यह धारा यह बताती है कि एक अजन्मे व्यक्ति (unborn person) को संपत्ति के अंतरण (transfer) से प्राप्त होने वाला हित (interest) कब निहित (vested) हो जाता है। जब किसी अजन्मे व्यक्ति को कोई हित अंतरित किया जाता है, तो वह हित उस व्यक्ति के जन्म लेते ही निहित हो जाता है, जब तक कि अंतरण के समय कोई विपरीत आशय व्यक्त न किया गया हो।
· इसका क्या मतलब है?
o हित का निहित होना: इसका मतलब यह है कि जन्म लेते ही उस बच्चे को संपत्ति में अधिकार मिल जाता है। भले ही संपत्ति पर उसका पूर्ण अधिकार बाद में किसी शर्त (जैसे वयस्क होने) के पूरा होने पर मिले, लेकिन जन्म के साथ ही संपत्ति पर उसका मालिकाना हक तय हो जाता है।
o विपरीत आशय: यह एक महत्वपूर्ण अपवाद है। यदि संपत्ति का अंतरण करते समय यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हित जन्म के तुरंत बाद निहित नहीं होगा, तो यह नियम लागू नहीं होगा। उदाहरण के लिए, यदि यह कहा गया है कि हित केवल तभी निहित होगा जब बच्चा 18 वर्ष की आयु पूरी कर ले, तो यह विपरीत आशय माना जाएगा।
· उदाहरण:
o 'क' अपनी संपत्ति 'ख' के अजन्मे पुत्र को देता है। 'ख' की पत्नी गर्भवती है।
o 'ख' की पत्नी एक पुत्र को जन्म देती है।
o इस धारा के अनुसार, जैसे ही पुत्र का जन्म होता है, संपत्ति में उसका हित तुरंत निहित हो जाता है।
o भले ही संपत्ति का कब्जा या पूर्ण अधिकार उसे भविष्य में मिले (जैसे 18 वर्ष का होने पर), लेकिन जन्म लेते ही संपत्ति में उसका अधिकार स्थापित हो जाता है।
धारा 21: समाश्रित हित (Contingent interest)
जब संपत्ति में किसी व्यक्ति का हित किसी अनिश्चित घटना के घटित होने या न होने पर निर्भर करता है।
यदि वह घटना नहीं घटती, तो हित विफल हो जाता है। यह हस्तांतरणीय हो सकता है लेकिन वंशानुगत नहीं होता जब तक कि वह निहित न हो जाए।
उदाहरण: A अपनी संपत्ति B को देता है यदि B कानून की परीक्षा पास कर लेता है। B का संपत्ति में हित समाश्रित है। यदि B परीक्षा पास नहीं करता, तो उसे कोई हित नहीं मिलेगा।
धारा 22: वर्ग में से कुछ व्यक्तियों के लाभ के लिए अंतरण (Transfer to a class some of whom attain a particular age)
· सिद्धांत: जब किसी वर्ग के व्यक्तियों (जैसे 'क' के पोते) को संपत्ति इस शर्त पर अंतरित की जाती है कि उनमें से कुछ लोग एक निश्चित आयु (उदाहरण के लिए, 18 वर्ष) प्राप्त करने पर संपत्ति के हकदार होंगे, तो केवल वे ही इस अंतरण से लाभान्वित होंगे जिन्होंने उस आयु को प्राप्त कर लिया है। यदि अंतरण का समय निर्धारित है और उस समय तक किसी व्यक्ति ने वह आयु प्राप्त नहीं की है, तो वह व्यक्ति अंतरण से वंचित रह सकता है।
· उदाहरण: 'क' अपने सभी पोतों को अपनी संपत्ति देता है, जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर लें। 'क' की मृत्यु के समय, उसका एक पोता 'ख' 18 वर्ष का है और एक 'ग' 17 वर्ष का है। 'क' की मृत्यु के बाद एक और पोता 'घ' पैदा होता है। इस मामले में, 'ख' को तुरंत संपत्ति का अधिकार मिल जाएगा। 'ग' को 18 वर्ष का होने पर मिलेगा। 'घ' को संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलेगा क्योंकि वह 'क' की मृत्यु के बाद पैदा हुआ है।
धारा 23: विशिष्ट अनिश्चित घटना के घटित न होने पर अंतरण (Transfer contingent on happening of a specified uncertain event)
· सिद्धांत: यदि संपत्ति का अंतरण किसी अनिश्चित घटना के घटित न होने पर निर्भर करता है, तो यह माना जाता है कि वह हित तभी सफल होगा जब वह घटना असंभव हो जाए या निर्दिष्ट समय बीत जाए।
· उदाहरण: 'क' अपनी संपत्ति 'ख' को इस शर्त पर देता है कि यदि 'ख' की शादी 'ग' से नहीं होती है। 'ख' की शादी किसी अन्य व्यक्ति से हो जाती है। अब 'ख' का 'ग' से शादी करना असंभव है। इस स्थिति में 'ख' को संपत्ति का अधिकार मिल जाएगा।
धारा 24: उन व्यक्तियों के लाभ के लिए अंतरण जो एक निश्चित घटना के घटित होने पर जीवित हों (Transfer to such of a class as attain a particular age)
· सिद्धांत: यह धारा बताती है कि यदि किसी वर्ग के व्यक्तियों को संपत्ति इस शर्त पर दी जाती है कि वे एक निश्चित घटना (जैसे 'क' की मृत्यु) के घटित होने पर जीवित हों, तो केवल वे व्यक्ति ही लाभान्वित होंगे जो उस घटना के घटित होने पर जीवित हैं।
· उदाहरण: 'क' अपनी संपत्ति 'ख' के सभी पुत्रों को देता है, जो 'क' की मृत्यु के समय जीवित हों। 'क' की मृत्यु के समय 'ख' के तीन पुत्र 'ग', 'घ' और 'च' जीवित थे। 'क' की मृत्यु के एक वर्ष बाद 'ङ' का जन्म होता है। इस मामले में केवल 'ग', 'घ' और 'च' को ही संपत्ति मिलेगी।
धारा 25: सशर्त अंतरण (Conditional transfer)
· सिद्धांत: यदि किसी संपत्ति का अंतरण ऐसी शर्त पर किया गया है जो असंभव है, कानून द्वारा निषिद्ध है, या अनैतिक है, तो वह शर्त शून्य होगी और अंतरण भी शून्य माना जाएगा।
· उदाहरण: 'क' अपनी संपत्ति 'ख' को इस शर्त पर देता है कि 'ख' एक निर्दोष व्यक्ति का क़त्ल करे। यह शर्त कानून द्वारा निषिद्ध है, इसलिए यह शून्य है और 'ख' को संपत्ति का अंतरण भी शून्य माना जाएगा।
धारा 26 से 29: सशर्त अंतरण के नियम (Rules of conditional transfer)
धारा 26 (सशर्त अंतरण की पूर्ति): यदि शर्त को वास्तविक रूप से पूरा किया गया है, तो सशर्त अंतरण प्रभावी होगा।
धारा 27 (पूर्ववर्ती हित की विफलता पर अंतरण): यदि कोई पूर्ववर्ती हित (prior interest) विफल हो जाता है, तो उसके बाद का हित (subsequent interest) तुरंत प्रभावी हो जाएगा, जब तक कि अंतरण में कोई विपरीत आशय न हो।
धारा 28 (उत्तरवर्ती शर्त पर अंतरण): यदि कोई शर्त किसी हित के नष्ट होने या समाप्त होने से संबंधित है, तो वह शर्त वैध मानी जाएगी।
धारा 29 (शर्त की पूर्ति का समय): यदि किसी शर्त की पूर्ति का कोई समय निर्धारित नहीं किया गया है, तो उसे एक उचित समय के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।
धारा 30: पूर्ववर्ती शर्त के पूरा न होने पर अंतरण (Transfer on failure of a prior condition)
· सिद्धांत: यदि किसी संपत्ति का अंतरण इस शर्त पर किया जाता है कि यदि कोई पूर्ववर्ती हित धारक शर्त को पूरा नहीं करता है, तो संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति को चली जाएगी, तो वह शर्त वैध होगी।
· उदाहरण: 'क' अपनी संपत्ति 'ख' को इस शर्त पर देता है कि यदि 'ख' एक वर्ष के भीतर 'ग' से शादी कर लेता है, तो 'ख' को संपत्ति मिल जाएगी। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता है, तो संपत्ति 'घ' को चली जाएगी। 'ख' एक वर्ष के भीतर 'ग' से शादी नहीं करता है, तो संपत्ति 'घ' को मिल जाएगी।
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