top of page

संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882) - Short Notes

  • Admin Law Classes
  • Jul 13
  • 14 min read

Updated: Jul 14

संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882) प्रारंभिक परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण धाराओं और सिद्धांतों के बारे में Short Notes

संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882) - Short Notes



transfer of property act

अधिनियम का लागू होना (Applicability of the Act):

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम मुख्य रूप से जीवित व्यक्तियों (inter vivos) के बीच संपत्ति के अंतरण से संबंधित है।

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम वसीयत (Wills) और उत्तराधिकार (Succession) या न्यायालय के आदेश (Operation of Law) द्वारा होने वाले अंतरणों पर लागू नहीं होता है।

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम मुख्य रूप से अचल संपत्ति (Immovable Property) के अंतरण से संबंधित है, हालांकि कुछ प्रावधान चल संपत्ति (Movable Property) पर भी लागू होते हैं (जैसे दान या अनुयोज्य दावे)।

अधिनियम के मुख्य उद्देश्य:

  • संपत्ति अंतरण से संबंधित कानूनों को परिभाषित और संशोधित करना।

  • संपत्ति अंतरण के सामान्य सिद्धांतों को निर्धारित करना।

सामान्य नियम बनाम अपवाद (General Rules vs. Exceptions):

  • अधिनियम में दिए गए अधिकांश प्रावधान संविदा के अधीन (subject to contract) होते हैं, जिसका अर्थ है कि यदि पार्टियों के बीच कोई विशेष अनुबंध है, तो वह अधिनियम के सामान्य प्रावधानों पर हावी होगा, जब तक कि वह लोक नीति या विधि के विरुद्ध न हो।

  • उदाहरण के लिए, धारा 106 (पट्टे की अवधि से संबंधित) "in the absence of a contract or local law or usage to the contrary(किसी संविदा या स्थानीय विधि या प्रथा के विपरीत न होने पर)" वाक्यांश के साथ शुरू होती है।

महत्वपूर्ण धाराएँ और सिद्धांत (Important Sections and Doctrines):

  • धारा 3: निर्वचन खंड (Interpretation Clause)

    • इसमें "अचल संपत्ति" (Immovable Property), "सूचना" (Notice), "अनुप्रमाणित" (Attested) आदि की परिभाषाएँ दी गई हैं।

    • अचल संपत्ति: इस अधिनियम में "अचल संपत्ति" को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इसमें क्या शामिल नहीं है, यह बताया गया है: खड़ी काष्ठ (standing timber), उगती फसलें (growing crops) और घास (grass)इसमें शामिल नहीं हैं ।

    • भूमि से स्थायी रूप से जुड़ा हुआ कोई भी लाभ भी अचल संपत्ति माना जाता है। इस पर कई महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय (case laws) हैं कि कौन सी वस्तु अचल संपत्ति है और कौन सी नहीं, विशेषकर जब मशीनरी या संरचनाएं जमीन से जुड़ी हों।

    • उदाहरण के लिए, यदि पेड़ काटने के उद्देश्य से हैं, तो वे चल संपत्ति हैं, लेकिन यदि वे जमीन से पोषण प्राप्त करने के लिए खड़े हैं, तो वे अचल संपत्ति का हिस्सा हैं।


    • सूचना: वास्तविक सूचना (Actual Notice) और आन्वयिक सूचना (Constructive Notice) को समझना महत्वपूर्ण है।

    • वास्तविक सूचना (Actual Notice): जब किसी व्यक्ति को किसी तथ्य की प्रत्यक्ष और निश्चित जानकारी होती है।

    • आन्वयिक सूचना (Constructive Notice): जब किसी व्यक्ति को किसी तथ्य की प्रत्यक्ष जानकारी न हो, लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी हों कि यदि उसने उचित सावधानी बरती होती तो उसे उस तथ्य की जानकारी हो जाती। उदाहरण के लिए, पंजीकृत दस्तावेज (registered document) की सूचना, कब्जे की सूचना (notice of possession), या धोखाधड़ी से बचने के लिए आवश्यक पूछताछ न करने की सूचना।

  • धारा 5: 'संपत्ति का अंतरण' परिभाषित ( 'Transfer of Property' Defined)

    • संपत्ति का अंतरण एक जीवित व्यक्ति द्वारा एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को, या स्वयं को, या स्वयं और एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को संपत्ति हस्तांतरित करने का एक कार्य है।

    • इसमें वर्तमान या भविष्य में संपत्ति का अंतरण शामिल हो सकता है।

  • धारा 6: क्या अंतरित किया जा सकता है (What may be Transferred)

    • सामान्य नियम यह है कि हर प्रकार की संपत्ति अंतरित की जा सकती है, जब तक कि अधिनियम या किसी अन्य कानून द्वारा विशेष रूप से निषिद्ध न हो।

    • कुछ चीजें जो अंतरित नहीं की जा सकतीं:

      1. उत्तराधिकार की संभावना (Chance of an heir apparent) - ये केवल संभावनाएँ हैं, कोई वर्तमान अधिकार नहीं।

      2. भविष्य के भरण-पोषण का अधिकार (Right to future maintenance) - व्यक्तिगत अधिकार होने के कारण यह अंतरणीय नहीं है।

      3. वाद लाने का अधिकार मात्र (Mere right to sue) - यह केवल कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है, संपत्ति का अधिकार नहीं।

      4. सार्वजनिक पद (Public office) - सार्वजनिक सेवा के पद अंतरणीय नहीं होते।

      5. सेना, नौसेना या वायु सेना के सदस्य की पेंशन - यह व्यक्तिगत सुरक्षा और समर्थन के लिए होती है।

    धारा 7: अंतरण करने के लिए सक्षम व्यक्ति (Persons Competent to Transfer)

    • हर वह व्यक्ति जो संविदा करने के लिए सक्षम है, संपत्ति का अंतरण कर सकता है। बशर्ते अंतरण करने वाले व्यक्ति उस संपत्ति का हकदार होना चाहिए या अंतरण करने के लिए अधिकृत होना चाहिए।

    • संविदा करने के लिए सक्षम हो, अर्थात्:

      • बहुमत की आयु प्राप्त कर चुका हो (18 वर्ष या संरक्षक नियुक्त होने पर 21 वर्ष)।

      • स्वस्थ मस्तिष्क का हो।

      • किसी भी कानून द्वारा संविदा करने से अयोग्य न ठहराया गया हो।

  • धारा 10: अन्य संक्रामण अवरुद्ध को रोकने वाली शर्त (Condition Restraining Alienation)

    • संपत्ति के अंतरण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाली कोई भी शर्त शून्य होती है।

    • यह धारा 'अंतरणीयता के विरुद्ध नियम' (Rule against Inalienability) पर आधारित है।

    • यदि किसी संपत्ति को अंतरित करते समय उस पर पूर्ण प्रतिबंध (absolute restraint) लगाया जाता है कि अंतरिती(Transferee) उसे आगे अंतरित(Transfer) नहीं कर सकता, तो ऐसी शर्त शून्य होती है। संपत्ति के मालिक को अपनी संपत्ति का निपटान करने का अधिकार है इसलिए ऐसी शर्त नहीं लगाईं जा सकती ।

    • हालांकि, आंशिक प्रतिबंध (partial restraint) वैध हो सकता है, जैसे कि किसी विशेष व्यक्ति को या किसी विशेष अवधि के लिए अंतरित न करने की शर्त, बशर्ते यह प्रतिबंध अत्यधिक न हो।

  • धारा 13: अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए अंतरण (Transfer for benefit of Unborn Person)

    • अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में सीधे संपत्ति का अंतरण नहीं किया जा सकता। उसके लिए पहले एक मध्यवर्ती हित (prior interest) बनाना आवश्यक है, और अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में दिया गया हित पूर्ण हित (absolute interest) होना चाहिए।

    • यह धारा 'दोहरी संभावनाओं के विरुद्ध नियम' (Rule against Double Possibilities) पर आधारित है।

    • अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में सीधे संपत्ति का अंतरण नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक जीवित व्यक्ति नहीं है।

    • इसके लिए, संपत्ति को पहले एक या अधिक जीवित व्यक्तियों के पक्ष में एक मध्यवर्ती हित (prior interest) के साथ अंतरित किया जाना चाहिए।

    • जब अजन्मा व्यक्ति अस्तित्व में आता है, तो उसके पक्ष में दिया गया हित पूर्ण हित (absolute interest) होना चाहिए, न कि सीमित हित

  • धारा 14: शाश्वतता के विरुद्ध नियम (Rule Against Perpetuity)

    • यह धारा अजन्मे व्यक्ति के पक्ष में अंतरण के संबंध में एक महत्वपूर्ण सीमा है। यह नियम संपत्ति को हमेशा के लिए अक्षम्य बनाने से रोकता है। कोई भी हित ऐसे व्यक्ति के पक्ष में सृजित नहीं किया जा सकता जो अंतरण की तारीख पर मौजूद न हो, और जो हित सृजित किया जा रहा है वह हित सबसे अंतिम जीवित व्यक्ति के जीवनकाल और उसके वयस्कता की आयु (18 वर्ष) के बाद 18 वर्ष से अधिक समय तक निलंबित नहीं रह सकता।

    •  यदि ऐसा अंतरण किया जाता है, तो हित शून्य हो जाता है।

    • इसका उद्देश्य संपत्ति को अनिश्चित काल तक 'लॉक' होने से रोकना है, ताकि वह बाजार से बाहर न हो जाए।

  • धारा 19: निहित हित (Vested Interest)

    • एक निहित हित वह होता है जो तत्काल प्रभावी होता है और किसी भी अनिश्चित घटना पर निर्भर नहीं करता। यद्यपि हो सकता है उसका वास्तविक कब्ज़ा (possession) भविष्य में मिले, परन्तु हित स्वयं वर्तमान में निश्चित होता है।

    • यह हित अंतरिती की मृत्यु पर भी समाप्त नहीं होता और उसके विधिक प्रतिनिधियों (legal heirs) को Transfer हो जाता है। यह हित अंतरणीय और वसीयत योग्य होता है।

  • धारा 21: समाश्रित हित (Contingent Interest)

    • एक समाश्रित हित वह होता है जिसका सृजन किसी अनिश्चित घटना के घटने या न घटने पर निर्भर करता है। यदि वह घटना घटित नहीं होती है, तो हित विफल हो सकता है।

    • यह अंतरिती की मृत्यु पर समाप्त हो सकता है यदि घटना उसकी मृत्यु से पहले नहीं होती है। यह अंतरणीय है, लेकिन अंतरिती को केवल उस हित का अधिकार मिलता है, जो घटना के घटने पर निश्चित हो जाएगा।

  • धारा 25: सशर्त अंतरण (Conditional Transfer)

    • जब कोई अंतरण किसी शर्त के अधीन किया जाता है, तो शर्त का पालन करना आवश्यक है। यदि शर्त असंभव, अवैध, या अनैतिक है, तो अंतरण शून्य हो सकता है।

    • जब कोई अंतरण ऐसी शर्त के अधीन किया जाता है जो:

      • पूरी तरह से असंभव हो।

      • विधि द्वारा निषिद्ध हो।

      • कपटपूर्ण हो।

      • किसी व्यक्ति के शरीर या संपत्ति को चोट पहुँचाने के अधीन हो ।

      • अनैतिक या लोक नीति के विरुद्ध हो।

        तो ऐसी शर्त शून्य होती है और अंतरण भी शून्य हो सकता है।

  • धारा 35: निर्वाचन का सिद्धांत (Doctrine of Election)

    • यह सिद्धांत इक्विटी (Equity) पर आधारित है।

    • जब कोई व्यक्ति एक ही विलेख के तहत एक संपत्ति में लाभ प्राप्त करता है और उसी विलेख के तहत उसे किसी अन्य संपत्ति पर अपने अधिकार का त्याग करने के लिए बाध्य किया जाता है (जो मूल रूप से उसकी अपनी थी), तो उसे लाभ स्वीकार करने या अपने अधिकार का दावा करने में से किसी एक को चुनना होगा।

    • वह एक ही समय में 'गरम और ठंडा' नहीं कर सकता (यानी, लाभ स्वीकार करे और अधिकार को भी बरकरार रखे)।

    • यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि कोई व्यक्ति किसी विलेख के एक हिस्से को स्वीकार करके और दूसरे को अस्वीकार करके अन्याय न करे।

  • धारा 41: दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण (Transfer by Ostensible Owner)

    • जब किसी अचल संपत्ति का वास्तविक स्वामी अपनी सहमति या अनुमति से किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति का दृश्यमान स्वामी (Ostensible Owner) बनने देता है।

    • यदि वह दृश्यमान स्वामी सद्भावपूर्ण क्रेता को प्रतिफल (consideration) के बदले में संपत्ति अंतरित करता है, और क्रेता ने उचित सावधानी बरती हो और सद्भावपूर्वक कार्य किया हो, तो वास्तविक स्वामी बाद में यह दावा नहीं कर सकता कि अंतरण अवैध था।

    • यह सिद्धांत उन स्थितियों में क्रेता के हितों की रक्षा करता है जहां उसने वास्तविक स्वामित्व की स्थिति के बारे में नहीं जाना था।

    • सरल शब्दों में, यदि किसी संपत्ति का वास्तविक मालिक किसी अन्य व्यक्ति (दृश्यमान स्वामी) को मालिक के रूप में प्रस्तुत होने देता है, और अन्य व्यक्ति उस संपत्ति को एक वास्तविक खरीदार को बेच देता है जो यह मानता है कि वह सच्चे मालिक से खरीद रहा है और उचित सावधानी बरतता है, तो वास्तविक मालिक बाद में संपत्ति को वापस नहीं ले सकता, भले ही उस अन्य व्यक्ति के पास बेचने का वास्तविक अधिकार न हो।

    • यह धारा निर्दोष तीसरे पक्ष के खरीदार की रक्षा करती है।

      उदाहरण: मान लीजिए 'ए' एक घर का वास्तविक मालिक है, लेकिन वह 'बी' (उसका दूर का रिश्तेदार) को इसे मैनेजमेंट करने, उसमें रहने और किराया वसूलने की अनुमति देता है, जिससे बाहरी लोगों को लगता हैं की 'बी' ही मालिक है। साथ साथ 'ए' 'बी' को कुछ ऐसे दस्तावेज भी देता है जिससे 'बी' मालिक जैसा लगता है। अब 'बी', 'ए' की वास्तविक अनुमति के बिना, उस घर को 'सी' को बेच देता है। 'सी' संपत्ति का निरीक्षण करता है, संबंधित दस्तावेजों की जांच करता है, और ईमानदारी से मानता है कि 'बी' ही मालिक है। 'सी' सद्भावपूर्वक भुगतान करता है। अब 'ए' बाद में यह दावा नहीं कर सकता कि 'बी' को बेचने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि 'ए' ने ही 'बी' को मालिक के रूप में प्रस्तुत होने दिया था।

    • नोट: इस स्थिति में, यहाँ 'सी' को धारा 41 के तहत संरक्षण प्राप्त है उससे कोई वापस नही ले सकता वो मकान ।

  • धारा 52: लंबित वाद का सिद्धांत (Doctrine of Lis Pendens)

    • यह सिद्धांत लैटिन सूक्ति "Ut lite pendente nihil innovetur" पर आधारित है, जिसका अर्थ है "जब मुकदमा लंबित हो, तो कुछ भी नया नहीं किया जाना चाहिए।"

    • जब किसी अचल संपत्ति से संबंधित वाद (suit) या कार्यवाही न्यायालय में लंबित हो, तो उस संपत्ति का कोई भी अंतरण या अन्य व्यवहार उस वाद के परिणाम से प्रभावित होगा।

    • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मुकदमेबाजी के दौरान संपत्ति को बदल कर न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को कमजोर न किया जाए। यह अंतरिती पर बाध्यकारी होता है, भले ही उसे वाद की सूचना न हो।

  • धारा 53: कपटपूर्ण अंतरण (Fraudulent Transfer)

    • यह धारा लेनदारों या बाद के खरीदारों के हितों की रक्षा करती है।

    • यदि किसी संपत्ति का अंतरण अपने लेनदारों को धोखा देने या उनके अधिकारों में देरी करने के इरादे से किया जाता है, तो ऐसा अंतरण लेनदारों के विकल्प पर शून्यकरणीय (voidable) होता है।

    • यदि यह बाद के खरीदार को धोखा देने के इरादे से किया जाता है, तो यह उस बाद के खरीदार के विकल्प पर शून्यकरणीय होता है।

  • धारा 53A: भागिक पालन का सिद्धांत (Doctrine of Part Performance)

    • यह सिद्धांत तब लागू होता है जब अचल संपत्ति के अंतरण का कोई पंजीकृत दस्तावेज नहीं होता है, लेकिन एक लिखित समझौता (जो पंजीकरण योग्य हो) मौजूद होता है और क्रेता ने उस समझौते के भागिक पालन में कब्जा प्राप्त कर लिया है या कुछ कार्य किए हैं।

    • यह सिद्धांत क्रेता को अपने कब्जे को बनाए रखने और विक्रेता को संपत्ति से बेदखल करने से रोकने का अधिकार देता है, भले ही पंजीकृत दस्तावेज न हो।

    • यह केवल बचाव के रूप में उपलब्ध है ('shield' not a 'sword'), अर्थात, इसका उपयोग अपने बचाव के लिए किया जा सकता है, न कि किसी पर मुकदमा करने के लिए।

    • उदाहरण: मान लीजिए 'ए' अपने घर को 'बी' को एक निश्चित कीमत पर बेचने के लिए सहमत होता है और 'बी' एक महत्वपूर्ण अग्रिम भुगतान करता है। 'ए' 'बी' को घर का कब्जा लेने की अनुमति देता है, और 'बी' वहां रहना शुरू कर देता है और समझौते के आधार पर कुछ छोटे-मोटे नवीनीकरण भी करता है। हालांकि, किसी कारणवश, औपचारिक विक्रय विलेख तुरंत निष्पादित या पंजीकृत नहीं होता है। बाद में, 'ए' 'बी' को बेदखल करने की कोशिश करता है या संपत्ति किसी और को बेचता है, यह दावा करते हुए कि चूंकि विक्रय विलेख पंजीकृत नहीं है, 'बी' का संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति में, 'बी' धारा 53A का invoked कर सकता है। चूंकि 'बी' ने अपने दायित्व का आंशिक रूप से प्रदर्शन किया है (अग्रिम भुगतान) और 'ए' की सहमति से कब्जा ले लिया है, 'ए' 'बी' के अधिकारों से इनकार नहीं कर सकता या 'बी' को बेदखल नहीं कर सकता। 'ए' को उचित विक्रय विलेख निष्पादित करके अपने अनुबंध के हिस्से को पूरा करने के लिए मजबूर किया जाएगा।

  • धारा 54: विक्रय (Sale)

    • विक्रय कीमत के बदले स्वामित्व का अंतरण है, चाहे कीमत का भुगतान कर दिया गया हो या वचन दिया गया हो, या आंशिक रूप से भुगतान किया गया हो और आंशिक रूप से वचन दिया गया हो।

    • 100 रु या उससे अधिक मूल्य की अचल संपत्ति का विक्रय केवल पंजीकृत लिखत (registered instrument) द्वारा ही किया जा सकता है।

    • 100 रु से कम मूल्य की अचल संपत्ति का विक्रय या तो पंजीकृत लिखत द्वारा या संपत्ति के परिदान (delivery of possession) द्वारा किया जा सकता है।

  • धारा 58: बंधक (Mortgage)

    • बंधक ऋण के लिए अचल संपत्ति में एक विशिष्ट प्रकार के हित का अंतरण है। बंधककर्ता (Mortgagor) वह व्यक्ति होता है जो संपत्ति बंधक रखता है, और बंधकदार (Mortgagee) वह व्यक्ति होता है जिसे संपत्ति बंधक रखी जाती है।

    • उदहारण:- धर्मेन्द्र एक नया घर खरीदने के लिए पंजाब नेशनल बैंक से ₹50,00,000 का ऋण लेना चाहते हैं। बैंक ऋण देने के लिए सहमत है, लेकिन धर्मेन्द्र से कहती हैं की अपना जयपुर वाला मौजूदा फ्लैट को सिक्केयूरिटी के रूप में रखो । धर्मेन्द्र पंजाब नेशनल बैंक के पक्ष में एक बंधक-विलेख निष्पादित करता हैं, जिससे बैंक को अपने फ्लैट में एक हित अंतरित हो जाता है। धर्मेन्द्र बंधककर्ता हैं, और पंजाब नेशनल बैंक बंधकदार है। यदि धर्मेन्द्र शर्तों के अनुसार ऋण चुका देते हैं, तो फ्लैट में बैंक का हित समाप्त हो जाता है, और बंधक मुक्त हो जाता है। हालांकि, यदि धर्मेन्द्र ऋण भुगतान में चूक करते हैं, तो बैंक, बंधकदार के रूप में, बंधक रखी गई फ्लैट को बेचकर ऋण राशि वसूल करने का अधिकार रखता है।

    • बंधक के प्रकार:

      • साधारण बंधक (Simple Mortgage): बंधककर्ता कब्जे का परिदान किए बिना, व्यक्तिगत रूप से ऋण चुकाने का वचन देता है।

      • सशर्त विक्रय द्वारा बंधक (Mortgage by Conditional Sale): बंधककर्ता संपत्ति को सशर्त रूप से बेचता है कि यदि ऋण चुकाया जाता है तो विक्रय शून्य हो जाएगा।

      • भोग बंधक (Usufructuary Mortgage): बंधककर्ता बंधकदार को कब्जे का परिदान करता है और उसे किराए या लाभ प्राप्त करने और ऋण चुकाने के लिए उनका उपयोग करने का अधिकार देता है।

      • अंग्रेजी बंधक (English Mortgage): बंधककर्ता बंधकदार को संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व अंतरित करता है, लेकिन इस शर्त पर कि ऋण चुकाने पर संपत्ति वापस अंतरित कर दी जाएगी।

      • दस्तावेजों के जमाव द्वारा बंधक (Mortgage by Deposit of Title Deeds): जब कोई व्यक्ति कुछ निर्दिष्ट शहरों में संपत्ति के शीर्षक दस्तावेज ऋण के लिए सुरक्षा के रूप में जमा करता है। इसे 'इक्विटेबल बंधक' भी कहते हैं।

      • असामान्य बंधक (Anomalous Mortgage): उपरोक्त प्रकारों का मिश्रण या कोई अन्य प्रकार।

  • धारा 60: मोचन का अधिकार (Right of Redemption)

    • यह बंधककर्ता का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। ऋण चुकाने के बाद बंधककर्ता को अपनी संपत्ति को बंधक से मुक्त कराने का अधिकार है। जिसे मोचन का अधिकार बोलते हैं

    • यह एक "बंधक के इक्विटी का सिद्धांत" (Equity of Redemption) है, जिसका अर्थ है कि बंधक में "एक बार बंधक हमेशा बंधक" का नियम लागू होता है, जब तक कि मोचन का अधिकार कानून द्वारा बाधित न हो।

  • धारा 105: पट्टा (Lease)

    • पट्टा अचल संपत्ति के उपयोग के अधिकार का अंतरण है, एक निश्चित अवधि के लिए या शाश्वत रूप से, प्रतिफल (premium) या किराए (rent) के बदले में।

    • यह केवल कब्जे का अंतरण है, स्वामित्व का नहीं।

    • पट्टेदार (Lessee): संपत्ति का उपयोग करने वाला।

    • पट्टाकर्ता (Lessor): संपत्ति का मालिक।

  • धारा 118: विनिमय (Exchange)

    • जब दो व्यक्ति ऐसी वस्तुओं के स्वामित्व का परस्पर अंतरण करते हैं जो धन नहीं हैं। इसमें धन के बदले धन का अंतरण शामिल नहीं है, केवल वस्तु के बदले वस्तु !

    • विनिमय के पक्षकारों के वही अधिकार और दायित्व होते हैं जो विक्रय के होते हैं।

  • धारा 122: दान (Gift)

    • दान किसी विद्यमान जंगम या स्थावर संपत्ति का, बिना किसी प्रतिफल (consideration) के, स्वेच्छा से दाता(देने वाला) द्वारा अदाता(प्राप्तकर्ता) को दिया गया अंतरण है।

    • यह अदाता द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए

    • अचल संपत्ति के दान के लिए पंजीकृत और अनुप्रमाणित (attested) लिखत आवश्यक है।

    • आवश्यक तत्व :-

      दान के प्रमुख तत्व हैं:

      1. स्वामित्व का अंतरण: इसमें मौजूदा संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण शामिल होना चाहिए।

      2. जंगम या स्थावर संपत्ति: संपत्ति जंगम (जैसे गहने, शेयर) या स्थावर (जैसे भूमि, घर) हो सकती है।

      3. स्वेच्छा से: अंतरण स्वतंत्र रूप से, बिना किसी जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव या धोखाधड़ी के किया जाना चाहिए।

      4. बिना प्रतिफल के: यह सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। दान बिना किसी मौद्रिक या गैर-मौद्रिक वापसी या विनिमय की अपेक्षा के दिया जाता है। यदि प्रतिफल है, तो यह एक विक्रय, विनिमय, या किसी अन्य प्रकार का अंतरण है, दान नहीं।

      5. आदाता द्वारा स्वीकृति: आदाता (दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति) को दाता के जीवनकाल के दौरान और जब दाता अभी भी दान देने में सक्षम हो, इसे स्वीकार करना होगा। यदि आदाता स्वीकृति से पहले मर जाता है, तो दान शून्य हो जाता है।

    • शून्य दान (Void Gifts): ये ऐसे दान होते हैं जो शुरू से ही कानूनी रूप से वैध नहीं होते हैं या कुछ शर्तों के कारण अमान्य हो जाते हैं। उदाहरणों में शामिल हैं:

      • भविष्य की संपत्ति का दान: धारा 124 के अनुसार, भविष्य की संपत्ति का दान शून्य होता है। केवल वर्तमान संपत्ति का ही दान किया जा सकता है।

      • अवैध उद्देश्य के लिए दान: यदि दान का उद्देश्य अवैध है, तो वह शून्य होता है।

      • अक्षम आदाता को दान: यद्यपि एक नाबालिग आदाता हो सकता है, यदि आदाता पूरी तरह से अक्षम है और दान को स्वीकार नहीं कर सकता (या उसकी ओर से), तो यह शून्य हो सकता है।

      • स्वीकृति से पहले आदाता की मृत्यु: यदि आदाता स्वीकृति से पहले मर जाता है (और जब दाता दान देने में सक्षम हो), तो दान शून्य होता है (धारा 122)।

      • असंभव या निषिद्ध शर्त के साथ दान: यदि कोई दान ऐसी शर्त के साथ किया जाता है जिसे पूरा करना असंभव है या कानून द्वारा निषिद्ध है, तो दान, या कम से कम शर्त, शून्य हो सकती है।

    • दुर्भर दान (Onerous Gifts): इस प्रकार के दान का उल्लेख संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 127 में किया गया है। एक दुर्भर दान वह होता है जहां दान की गई संपत्ति के साथ कोई भार या दायित्व जुड़ा होता है (जैसे ऋण या अन्य दायित्व)। यहां सिद्धांत "क्वि सेंटिट कमोडम सेंटियर डेबेट ओनूस" है, जिसका अर्थ है "जिसे लाभ मिलता है उसे भार भी उठाना चाहिए"।

      • यदि एक ही अंतरण में कई वस्तुएं शामिल हैं, जिनमें से कुछ पर भार है और कुछ पर नहीं, तो आदाता केवल लाभदायक वस्तुओं को स्वीकार करके बोझ वाली वस्तुओं को अस्वीकार नहीं कर सकता है। उसे पूरे दान को पूरी तरह से स्वीकार करना होगा या उसे पूरी तरह से अस्वीकार करना होगा।

      • यदि दो या अधिक अलग और स्वतंत्र अंतरण हैं, तो आदाता उनमें से एक को स्वीकार करने और दूसरे को अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है, भले ही स्वीकार किया गया लाभदायक हो और अस्वीकृत दुर्भर हो।

      • यदि कोई अयोग्य व्यक्ति (जैसे नाबालिग) दुर्भर दान स्वीकार करता है, तो वह दायित्व से बाध्य नहीं होता है। हालांकि, यदि वह संविदा करने में सक्षम होने और दायित्व से अवगत होने के बाद संपत्ति को रखता है, तो वह बाध्य हो जाता है।

  • धारा 130: अनुयोज्य दावा (Actionable Claim)

    • यह असुरक्षित ऋण (unsecured debt) या किसी चल संपत्ति में ऐसे हित को परिभाषित करता है जो कब्जे में नहीं है और जिसके लिए सिविल न्यायालय में राहत का दावा किया जा सकता है।

    • उदाहरण: बकाया किराया, बीमा पॉलिसी के तहत राशि, आदि।

    • अनुयोज्य दावे का अंतरण लिखित लिखत द्वारा ही किया जा सकता है।

    • उदहारण मान लीजिए राकेश ने धर्मेन्द्र से ₹10,000 उधार लिए , और यह एक असुरक्षित ऋण है (यानी, किसी संपत्ति द्वारा सुरक्षित नहीं है)। धर्मेन्द्र को तत्काल नकदी की आवश्यकता है, इसलिए वह राकेश से इस ₹10,000 को वसूल करने के अपने अधिकार को अशोक को ₹8,000 में अंतरित करने का फैसला करता हैं। धर्मेन्द्र एक लिखित दस्तावेज़ (एक समनुदेशन विलेख) निष्पादित करता हैं जिससे इस "अनुयोज्य दावे" को अशोक को अंतरित करता है। एक बार यह दस्तावेज़ हस्ताक्षरित हो जाने पर, अशोक को अब राकेश से ₹10,000 वसूल करने का कानूनी अधिकार है, भले ही राकेश को अभी तक सूचित नहीं किया गया हो। अशोक अब वह व्यक्ति है जो राकेश पर भुगतान न करने पर मुकदमा कर सकता है।


      कुछ महत्वपूर्ण शब्दों का अर्थ

  • अंतरिती -(वह व्यक्ति जिसे संपत्ति मिल रही है)

  • अंतरणकर्ता -(वह व्यक्ति जो संपत्ति दे रहा है)

  • विक्रय -(कीमत के बदले स्वामित्व का अंतरण है)

  • बंधक - (लोन लेने के लिए अचल संपत्ति का एक विशिष्ट प्रकार के हित का अंतरण करना)

  • बंधककर्ता (mortgagor) - वह व्यक्ति जो अपने हित का अंतरण करता है

  • बंधकदार (mortgagee) - वह व्यक्ति जिसको हित अंतरित किया जाता है

  • मोचन - बंधक सम्पति को बंधक से मुक्त(छुड़ाना) करवाना मोचन कहलाता हैं

  • पट्टा (Lease)- अचल संपत्ति के उपयोग करने का जो अधिकार होता हैं उसका अंतरण

  • पट्टेदार (Lessee): संपत्ति का उपयोग करने वाला।

  • पट्टाकर्ता (Lessor): संपत्ति का मालिक।

  • विनिमय (Exchange) - वस्तु के बदले वस्तु


Notes By Law Classes Jaipur Contact For Judiciary Courses 9414234222

Comments


© 2025 by Law Classes Jaipur Best coaching for RJS , ADJ, JLO and Judiciary Designed By DharTee

bottom of page